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भ॒रद्वा॑जा॒याव॑ धुक्षत द्वि॒ता। धे॒नुं च॑ वि॒श्वदो॑हस॒मिषं॑ च वि॒श्वभो॑जसम् ॥१३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

bharadvājāyāva dhukṣata dvitā | dhenuṁ ca viśvadohasam iṣaṁ ca viśvabhojasam ||

पद पाठ

भ॒रत्ऽवा॑जाय। अव॑। धु॒क्ष॒त॒। द्वि॒ता। धे॒नुम्। च॒। वि॒श्वऽदो॑हसम्। इष॑म्। च॒। वि॒श्वऽभो॑जसम् ॥१३॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:48» मन्त्र:13 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:3» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:13


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो विदुषी माता (भरद्वाजाय) जिसने विज्ञान धारण किया उसके लिये (विश्वदोहसम्) जिससे समस्त विज्ञान को पूर्ण करती उस (धेनुम्) विद्या युक्त वाणी को (अव, धुक्षत) परिपूर्ण करती है और (विश्वभोजसम्) समस्त मनुष्यमात्र के पालक (इषम्) अन्न वा विज्ञान को (च) भी परिपूर्ण करती है वह (द्विता) दोनों विज्ञान वा अन्न की चेष्टावाली (च) भी इस प्रचारिणी क्रिया से होती है ॥१३॥
भावार्थभाषाः - जो स्त्रीजन सत्यभाषणयुक्त वाणी और सर्वोत्तम सत्य विद्या को सन्तानों के लिये देती हैं, वे ही देवी विदुषी स्त्रियाँ बहुत मान करने के योग्य होती हैं ॥१३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

या विदुषी माता भरद्वाजाय विश्वदोहसं धेनुमवधुक्षत विश्वभोजसमिषं चावधुक्षत सा द्विता चानया प्रचारिण्या क्रियया भवति ॥१३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (भरद्वाजाय) धृतविज्ञानाय (अव) (धुक्षत) अलङ्कुरुते (द्विता) द्वयोर्भावः (धेनुम्) विद्यायुक्तां वाचम् (च) (विश्वदोहसम्) विश्वं सर्वविज्ञानान् दोग्धियया ताम् (इषम्) अन्नं विज्ञानं वा (च) (विश्वभोजसम्) विश्वस्य समग्रस्य जनस्य पालकम् ॥१३॥
भावार्थभाषाः - याः स्त्रियः सत्यभाषणान्वितां वाचं सर्वोत्तमां सत्यां विद्यां च सन्तानेभ्यः प्रयच्छन्ति ता एव देव्यो बहुमान्या भवन्ति ॥१३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या स्त्रिया सत्य वाणी व सर्वोत्तम सत्य विद्या संतानांना देतात त्याच देवी असून अत्यंत माननीय असतात. ॥ १३ ॥